क्योंकि इतनी नौकरियां हैं ही नहीं । जनसंख्या इतनी अधिक और नौकरियां है नहीं उस अनुपात में। एक तो देश गरीब है। अब गरीब सिर्फ दाल रोटी पर ही मुश्किल से खर्च करता है तो दूसरे उत्पादनों का तो क्या इस्तेमाल करेगा। यहाँ विकसित देशों में लगभग हर किसी जरूरत के लिए एक प्रोडक्ट है और उसे खरीदने वाले लोग भी , वहीं भारत में जनसँख्या तो बहुत है उस हिसाब से विकास हुआ नहीं और लोगों की जरूरतें सीमित है और अक्सर लोग बुरे दिनों के इन्तज़ार में पैसा एकत्रित ही करते रहते हैं।
अब अमेरिका में ऐसा प्रोडक्ट भी बिक रहा जो दाढ़ी ट्रिम करते वक़्त दाढ़ी के बालों को वाश बेसिन में जाने या फंसने से रोकता है।
हमारे यहाँ ऐसा प्रोडक्ट कभी नहीं बिकेगा। हम अपने हाथ से ही बालों को उठाकर कूड़ेदान में फेंक देंगे।
ऐसे हज़ारों लाखों प्रोडक्ट्स है यो हमारे देश में नहीं बिकेंगे। अब इंडस्ट्रीज और सर्विसेज लिमिटेड ही है। इतनी अधिक जनसंख्या है पर उस हिसाब से खपत नहीं क्योंकि न तो प्रयाप्त धन है ना ही लोगों की इच्छा। अगर अमेरिका के हिसाब से खपत बढ़ जाए तो समजिये दुनिया में सबसे आमिर देश बन गए।
देश मे गरीबी है और नौकरियां भी कम ,तो मालिक भी एक ही आदमी से 2–3 व्यक्तियों का काम करवा लेता है अधिक मुनाफे के चक्कर में।
दूसरा इंडस्ट्रीज चलाना भी आसान नहीं है। सरकार सैंकड़ो किस्म के नियम कानून और पेचीदा पेच डाल देती है। जिनको लोन मिलना चाहिए उनको तो मिलता नही अपितु उनको मिल जाता है जो उनकी जेब गर्म कर दे।
यह एक प्रकार का विशियस साईकल (दुष्चक्र) है जो चलता रहता है। इससे निकलना आसान नहीं। सबसे पहले जनसँख्या नियंत्रण करना ही होगा। फिर डिमांड बढ़ानी होगी और फिर इंडस्ट्रीज को बढ़ावा देना होगा तब जाकर नौकरियों का निर्माण होगा।
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