सरकारी नौकरी पाने में असफलता इतनी क्यों मिलती है?
केंद्रीय सेवा में करीब 1000 पद आते हैं, जबकि इम्तहान में बैठने वालों की संख्या 10 लाख से ज्यादा रहती है। 0.01 % यानी 1000 में एक ही चुने जाते हैं।
बैंकिंग एसएससी जैसे एग्जाम में बैठने वाले 1 करोड़ तक हैं।
कितने सारे एग्जाम बस नाम के हैं, समय पर होते नहीं।
इसमें भी 70% सीट्स तरह तरह के आरक्षण के लिए हैं।
यानी कहीं 99.99% कंडिडेट को नाकामयाबी ही हांसिल होनी है चाहे वे कितनी भी तैयारी कर लें।
इतनी भीड़ हो तब लक फैक्टर बहुत ही ज्यादा काम करता है कि कट ऑफ से 1 अंक ऊपर में ही 1000 के 800 कैंडिडेट आ जाते है। इस 1 अंक के लिए ही जबरदस्त मारामारी है।
एक ही चीज आसान है और सबसे ज्यादा चलती है कि दूसरों को सरकारी नौकरी करने की सलाह दो और उनसे पैसे बनाओ। कोचिंग संस्थाएं कुकुरमुत्ते की तरह पनप गयी हैं । इनका काम है कि जिनका हो गया है उन्हें पैसे दे कर, इंटरव्यू ले।
ये अफसर फिर बताते हैं कि आईएएस बनना बहुत आसान है। बस 8 घंटे की ncert की पढ़ाई और सही मार्गदर्शन से सबका हो जाता है।
इस तरह का वीडियो कोई देख ले, तब उसे लगता है कि 1 से 2 साल में आइएएस बनना तय है तो ऐरे-गैरों को क्यों सुनें।
बदले में 100 लड़के भी फंसे तो इनकी कमाई 1 करोड़ से ज्यादा।
सरकारी नौकरी पर जान देने वाले उकसाने का काम निजी कोचिंग संस्थाएं ही कर रहीं हैं। एक तरह का पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप
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