भारत में इंजीनियरों की बढती बेरोजगारी का जिम्मेदार किसे ठहराया जा सकता है ? सरकार को या इंजिनियरों को

आपको हम ज़मीनी हक़ीक़त बताते हैं |

सत्तर-अस्सी के दशक मेंं भारत में साक्षरता बहुत कम थी | मुट्ठी भर लोग ही तकनीकी अध्ययन और डिग्री ले पाते थे | जनसंंख्या भी कम थी | (कोई लिंक नहीं दिया जयेगा -क्यूंकि उत्तर स्पैम अंकित हो जा रहे हैं )

सरकार ने पब्लिक सेक्टर अंडर्टेकिंग (पी एस यू) बनाये – लोगोंं को रोजगार देने के लिये | आज जिस संगठन में हम नौकरी कर रहे हैं – यहाँ पर कम्पनी के अपने सारे कर्मचारी और अनुबंधित कर्मचारियों को मिलाकर कुल संख्या 13 हज़ार है | इनमें से करीब 3 हज़ार एक्ज़िक्यूटिव यानी प्रबंधन में हैं और बाकी नहीं |

एक समय यह संख्या 80 हज़ार हुआ करती थी – 80 हज़ार यानी 80-90 के दशक में |

हर महीने बीस से तीस लोग सेवानिवृत्त हो रहे हैं | हमारे संस्थान में लोगों का वेतन पूरे खर्च का एक बहुत बड़ा अंश है – इस कारण इतनी नियुक्तियाँ अब हो नहीं रही हैं |

ये बस एक पी एस यू की एक फैक्टरी की कहानी है |

एक सरकारी संस्थान को सरकार ने साफ कह दिया है कि मुनाफा ना हो तो पे स्केल रिवीजन नहीं लगेगा |

यह बात हम भूल जाते हैं कि सरकारी संगठन पहले तो रोजगार देने के लिए बने पर बाद मेंं उनके लिये भी लक्ष्य मुनाफा ही बन गया | ऐसे में यह आशा रखना व्यर्थ है कि अब पहले की भांति सभी पदों पर उसी अनुपात में बहाली की जाएगी।

आज कल हर संगठन कम लागत में मुनाफा बढ़ाना चाहता है – और सिर्फ चाहने की बात नहीं | अगर कोई संगठन ऐसा ना करे तो वो आज के बाज़ार में टिक नहीं पायेगा | एक दशक पहले जिस विभाग में बीस -पच्चीस लोग होते थे -वहाँ 2 कम्प्यूटर ले कर 2 लोग काम सम्भाल रहे हैं |

यहाँ बढ़ती बेरोजगारी का प्रधान कारण बढ़ती जनसंख्या है |

और क्षमा करें ऐसे प्रश्नों में थोड़ा पूर्वाग्रह भी है | आप तुलना करेंगे तो विज्ञान और कला स्नातकों की स्थिति भी ऐसी ही है |

लोग सोचते हैं कि इंजीनियरिंग कोई जादुई डिग्री है – जिस में फोर्थ ईयर में आते ही कम्पनियां दौड़ी-दौड़ी आती हैं और नियुक्ति पत्र हाथ में थमा देती हैं | वो पहले की बात थी | आज भी टी सी एस , सी टी एस, टेक महिंद्रा जैसी कम्पनियाँ यथासम्भव मास रिक्रूट्मेंट करती ही हैं |

पर कोई अनजान कॉलेज से पढ़कर आप कैम्पस प्लेस्मेंट की भरोसे नहीं बैठ सकते |

दूसरा कारण हमारा इंजीनियरिंग पाठ्य क्रम है जो समय के साथ अपडेट नहींं हो रहा | आधे से ज़्यादा इन्जीनियरों को पता ही नहीं है कि परीक्षा की तैयारी कैसे करते हैं | चार साल ज़ेरॉक्स किये हुए नोट्स सेमेस्टर के आगे पढ़ते हैं और फिर आशा करते हैं कि इतनी प्रतियोगिता के बाज़ार में जहाँ इतनी कम्पनियाँ ले-ऑफ कर रही हैं -कि नौकरी आसान है |

क्षमा करिये पर हर बात के लिये हम सरकार का मुखापेक्षी बन कर नहीं रह सकते | जियो की बदौलत आज कल हर किसी के पास मुफ्त का अंतरजाल है और आप घर बैठे प्रतियोगिता संबंधित सारी किताबें , जानकारी ले सकते हैंं | लोग जियो का इस्तेमाल क्या देखने हेतु करते हैंं-ये मैं कहना नहीं चाहती |अधिकतर ‘इंजीनियरिंग छात्रों’ को टोरेंट साइट्स पता हैं – क्या फ्री -ई पुस्तक की साइट्स पता हैं ??

कोर्सेरा, खान अकदमी , यूडेमी – कितने छात्र इनका उपयोग करते हैं ??

ऐसे संस्थानों को बिल्कुल गरज नहीं रहती है कि हम अपने पास होते छात्र को नौकरी योग्या बनाये |

कई औसत संस्थानों से पढ़े छात्रों को मैंने सिर्फ मेहनत और लगन से अच्छी नौकरी या स्टार्ट -अप या व्यवसाय में सफल होते देखा है | इसलिये इस बेरोजगारी का ज़िम्मेदार कुछ हद तक व्यक्ति स्वयं भी है |

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